मन बेचैन है, परेशांन है, आकुल है हैरान है
नवागत के आगमन पर उमंगें है उल्लास है
साथ ही मन मैं है भय उस दर्द का
नव जीवन के आगमन पर होने वाली असहनीय पीड़ा
कैसे सह पायेगी लाडली उस मर्मान्तक पीड़ा को
मन कांप उठता है हृदय घबरा उढ़ता है नींद जाती है उड़
रूह कांप जाती है , याद कर माँ की उस पल को
क्या करे ? गुजरी है माँ भी इसी तकलीफ से
और जन्मी थी यही लाडली उसी शरीर से
प्राकर्तिक का यह नियम चलता रहेगा इसी तरह
शाश्वत , सदैव , निरंतर और अनवरत .
सोमवार, 22 नवंबर 2010
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