गैरो ने दिया साथ हमेशा और पीठ थपथपाई
अपनों ने सदैव खोंपा खंजर और उफ़ भी न कर पाई
गैरो ने लगाया मरहम और साथ ही दवा पिलाई
अपनों से पेश आए प्यार से और बदले में मिली खाई
गैरो ने समझा दर्द हमेशा और न की कभी रुस्बाई
अपनों ने किया मजाक और हर बात हंसी में उड़ाई
गैरो ने हमको समझाया और उनकी गन्दी फितरत बताई
अपनों ने रुलाया हमेशा और मिलने पर बेरुखी दिखाई
गैरो ने बदाय हौसला और पास आ कर हिम्मत बंधाई
कौन है अपना इस जग में यह मई आज तक ना समझ पाई
अपनों ने कीं सामने मीठी- मीठी बाते गैरों ने कड़वाहट भी समझाई
अपनों और गैरो के समीकरण में ही रहीं उलझी जिंदगी
चाह कर भी इनके ताने बानो से आज तक न निकल पाई ...
आखिर किया है अपनों और गैरों की गहराई ?