शनिवार, 3 दिसंबर 2011

भ्रम जाल




अवसाद गहन अवसाद में घिर गए थे हम
अपनों  ने ना  दिया होता सहारा तो मर ही गए थे हम
अपनों ने ही धकेला था हमें अवसाद की गहरी खाई में भ्रम जाल
और अपनों ने ही निकाला,और नेक सलाह सुझाई
मानसिक संतुलन था गड़बड़ाया और था दिल घबराया
अँधेरा ही अँधेरा था और देता था न कुछ दिखाई
रिश्तों की गुत्थी उलझी इतनी की सिरा भी न आता पकडाई
 क्या करते जीना भी तो यही है ,मकडजाल में आत्मा भी घबरायी
हम खुद ही इसके जिम्मेदार हैं बात यह ही अब समझ आई
न करते हम अपने आसपास इतनी गंदगी इकठा करते रहते सफाई
सच्चे दोस्त,सगे ,सम्बन्धी और अपनों की इसी अवसाद ने पहचान कराई
अब न घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते -आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तेयारी कर ली थी हमने रिश्तों में उलजने की
दावानल में घिरने की ,अब फिर से है बारी आई
कोई न है विकल्प इस माया जल का बहु भांति है हम अजमाई

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...