शनिवार, 21 जनवरी 2012

त्रासदी


सुबह पेपर में पड़ाएक युवक ने की आत्महत्या
दो दिन से था पेट खाली पोस्त्मर्तम रिपोर्ट ने यह बताया
गरीबी का था आलम की पूरा परिवार समां जाता एक गुदरी में
न सर पर था छप्पर ,न पेट में भोजन जीवन की मार्मिक त्रासदी मन को न भाई
हम बातें करते हैं २१वी सदी की ,चाँद पर जाने की सबने है जुगत भिडाई
पर वह रे मानव तुजसे तो यह इश्वर प्रदत्त धरा न सम्हाल पाया
जितना दिया तुझको उस विधाता ने पहले उसको तो तू सहेज
सर पर छेत,पेट में अन्न ,और थोडा सा वस्त्र इतना सा भी तू न सबको दे पाया

मकर संक्रांति


आज थी मकर संक्रांति और था मांगने वालों का रेला
तभी नज़र पड़ी  कोने में कड़ी था एक वृद्ध अकेला
पास बुलाया और पुछा बाबा क्या चाहिये ?
बोला कुछ नहीं बस दुआएं दिए जा रहा था
वृद्ध काया ,पोपला मुह,शीतल वायु फटे वस्त्र उडाये जा रही थी
धीमे -धीमे रेंगते रेंगते सड़क पर बस घिसट रहा था
कहा बाबा घर से न निकला करो सड़क पर गिर जाओगे
बोला हम कहाँ निकलना चाहते है बेटा ,कमबक्त ये पेट नहीं मानता
न पत्नी ,न परिवार  न ही औलाद है हमारे पास
पर क्या करे बेटी घर पर नहीं वैठकर भर पता यह पेट
हमारे तो अब तुम सब बच्चे हो जिन्होंने न सोने दिया कभी भूखे पेट
 निशब्द रह गए थे हम उसका जबाब सुनकर
सब कुछ छीनकर भी प्रभु ने दिया उसको सबका प्यार

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...