रविवार, 25 मार्च 2012

पाषाण हिरदय

सब कहते हैं कि इंसान वक़्त के साथ बदल जाया करते हैं
समाज ,तजुर्बे ,उम्र ,रिश्ते आखिर बदल ही देते हैं कुछ इंसानों को 
पर जो पाषाण- ह्रदय ही जन्मे थे इस जग में कुछ भीं ना कर पाते हैं 
वक़्त,हालत चाहे दे उनको कितनी भी चोटे वे जस के तस रह जाते हैं 
क्या देखा है कभी किसी शिला को टूटते समंदर कि लहरों से ??
नहीं ना ,,,ना बदला दुर्योधन और  ना ही बदल सका अपने को पापी कंस
ना ही बदली कुटिल चाले शकुनी मामा की और ना ही बदल पाया दुष्ट रावन 
यह या तो नियति या फिर प्रवृति का ही होता है खेल 
पहले भी सबने की थी  पत्थरों से दरिया बहाने की नाकाम कोशिश  
पर ना तब ही कंस बदला और ना ही वो सब बदले अब ............

माँ के भक्त

माँ के भक्त बने वो घंटो मंदिर में कीर्तन किया करते हैं
घर आकर पत्नी और बेटी पर सितम धाय करते हैं 
नवरात्री में सिर्फ फलाहार  का सेवन किया करते हैं 
बेटी और माँ भूखे पेट ही सो जाया करते हैं 
दक्षिणा में मिले रूपए मदिरालय में जाया करते हैं 
माँ -बेटी फूटी कौड़ी को भी तरस जाया करते हैं 
रखते तो माँ के व्रत हैं पर हर स्त्री पर कामुक नज़र रखते हैं 
माँ -बेटी को दरिंदगी की हदों से भी बदतर रखते हैं 
मंदिर में माँ की महिमा का बखान करते हैं 
घर पर लात घूंसे से ही बात आरम्भ करते हैं 
इतना बदसूरत विरोधाभास  हम अक्सर अपने आसपास देखा करते हैं 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...