शनिवार, 12 मई 2012

ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंह...


ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंहा
चली गयी हो माँ आप हम को छोड़ कर जहाँ 
रोज़ रोता है दिल ,और तिल तिल-तिल मरते हैं हम यहाँ 
सोचा भी न था कभी ऐसा भी होगा हमारे साथ यहाँ 
जिंदगी में जैसे एक झंझावत आया और फैला सब यहाँ -वहां 
साडी दुनिया मना रही है मात्-दिवस हमारी नज़रे हैं सिर्फ वहां 
जहाँ आप जा बैठी हैं,क्यूँ नहीं हमसे मिल सकती हैं यहाँ ??????????????? 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...