मंगलवार, 3 जुलाई 2012

जीवन

जिन्दगी का पहिया इतनी तेज़ी से रहा था भाग
हम सोच रहे थे कि हमने तो इसको बाँध रखा है मुटठी में 
पर वो तो खिसक रहा था मुट्ठी में बंद रेत की मानिद 
कब हो गया हाथ खाली हमको पता ही न चला 
और समेट भी ना सके एक भी कण उस रेत का 
जो समय जाता है गुजर लाख चाहो तो भी न पा सकोगे ऊम्र भर 
क्योँ नहीं समझ पाया मानुस वक़्त रहते यह गणित
बस फिर बटोरता रहता है रेत के टुकडो को जीवन भर 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...