मंगलवार, 12 मार्च 2013



गए थे पिछले पखवारे सैर करने को बैंकाक ,पटाया 
मन था उत्साह से लबरेज़ ,विदेश यात्रा ने था मन को लुभाया 
ढेरों ख्वाब ,अनगिनत सपने थे मन में संजोये ,मन खूब था हर्षाया 
थोड़ी हकीकत ,और आधी अधूरी जानकारी भी थी उस देश की 
पर जाकर जो देखा उस से मन और आत्मा दोनों का वजूद थर्राया 
क्या स्त्री सिर्फ भोग्या है ,सिर्फ इस्तेमाल के वास्ते ही है बस उसका वजूद 
कैसे कोई देश सिर्फ अपनी तरक्की का रास्ता औरत को बनाकर हथियार 
खोज सकता है ,सोच सकता है और मिटा सकता है उसका अस्तित्व 
ढेरो देखे पुरुष जो बन रहे हैं स्त्री कमाने को ढेरों पैसा और दूंढ रहे हैं ख़ुशी 
ओढ़ कर नकली मुखोटा ,जी रहे हैं नकली स्त्री बनकर ,............
लड़की जो जन्मते ही मान ली जाती है माँ-बाप की आमदनी का जरिया 
कैसे कोई माँ-बाप धकेल सकते हैं उसको जिस्मफरोशी की गहरी खाई में ?
नजर डाली अपने ऊपर तो पाया हम भी कुछ कम नहीं उन विदेशियों से 
वो जन्मने के बाद लड़की की आत्मा का हनन कर रहे हैं और हम ??
हम तो गर्भ में ही उसकी आत्मा और उसका वजूद मिटा डालते हैं 
पर दोष तो दूसरों का ही दीखता है ,ऐसा ही सदेव होता है 
इतना व्यभिचार ,ताज़े गोश्त की मंडी ,कलेजा था हलकान 
सुनने और देखने में है बहुत फर्क यह मन आज था जान पाया 
औरत तो बस दिख रही थी हर मोड़ पर बिकती भेड़ -बकरी की  मानिद 
और बाज़ार सजा था बहुतरे काले ,गोरे ,बूड़े और नौजवान खरीदारों से 
औरत का यह रूप था हमारे लिए अनजाना जो खुद को रही थी परोस 
हर किसीको  सर्फ और सिर्फ कुछ चमकते सिक्के और डॉलर के वास्ते 
पैसा बहुत जरूरी है जीने और जिन्दगी के वास्ते 
पर यूँ और इस रूप को न मन था आखिर तक स्वीकार पाया ...........

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...