सोमवार, 9 दिसंबर 2013

बेटियां .




कितनी बदरंग ,और बदसूरत जिंदगी पाती हैं यह बेटियां .
कोख में आते ही माँ को रुलाती हैं यह बेटियां


जीवन मिल जाये तो खुद गहरे जख्म पाती हैं यह बेटियां
जवान हुई नहीं कि शोहदो कि छेड-चाड झेलती हैं यह बेटियां
माँ -बाप के ताने ,घर -भीतर की मार झेलती हैं बेटियां
सप्तपदी होते ही एकायक समझदार हो जाती बेटियां
पीहर और ससुराल के बीच अपना घर दूंद्ती रह जाती बेटियां
माँ कहे ससुराल तेरा घर ,सास सुनाये तेरा मायेका ही तेरा घर
चक्की के पाट की मानिद पिसती हैं यह बेटियां
पीहर और ससुराल दोनों की इज्जत का बोझ ढोतीहैं बेटियां
ना माँ के काँधे सर रख व्यथा कहे न ससुराल बताती हैं यह बेटियां
दोनों घरों की लाज बचाने को खूबसूरती से झूट बोलती हैं बेटियां
बूडे माँ -बाप की जिंदगी की खातिर भाई से भी भिड़ती हैं यह बेटियां
इतनी खूबियौं के बाबजूद भी कोई ना चाहे जनम ले अंगने बेटियां ..........

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