गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हाय री किस्मत



बचपन से ही पाथते रहे ईटें ,वो बच्चे भट्टों पर
देखते गुजरती रही उम्र ईंटों को उनकी भट्टों पर
सबके आश्याने वास्ते हाथों से बन गयीं लाखों ईटें
पर वो गरीब बना ना सका एक खोली भी उम्र भर
उफ़ ,,,,,कुदरत के खेल भी हैं कैसे अनोखे
जो दर्जी सीता रहा सबके वस्त्र उम्र भर
अपने लिए ना जोड़ पाया साबुत एक कमीज़ उम्र भर 

खुदा की नेमत


कभी रोना रोते रहे कि किस्मत नहीं साथ दे रही
कभी रोये सुनकर कि सेहत नहीं साथ दे रही
कभी रही तकलीफ कि हालत नहीं साथ दे रहे
कभी था रोना कि परिवार साथ नहीं दे रहा
पूरी उम्र निकाल दी रोते -रोते ,ईश्वर को कोसते -कोसते
कभी दायें -बाएं मुड़कर ना देखा ,जो था पाया उसको ना सराहा
उस ईश्वर ने जो दिया ,उसको हमेशा था ठुकराया
अब मौत का आ गया बुलावा दरवाज़े पर
तो था वो अब हमको खुदा याद आया 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...