गुरुवार, 6 मार्च 2014

नवयुगल


यात्रा में मिला एक नवयुगल ,प्रेमरस से जो था सरोबार
पूरे रास्ते जो खींच रहा था सबका ध्यान अपनी ओर बार -बार
अभी- अभी जो लौट रहे थे शायद हनीमून से अपने घर- बार
ट्रेन में सारे रास्ते करते जा रहे थे असभ्यता बार -बार
यूं सारे राह ना उनका स्नेह प्रदर्शन भा रहा था किसी भी सहयात्री को 
जैसे ही निकट आया उनका स्टेशन पत्नी के रंग बदले बार -बार
पति पर चीखी की उतारो सूटकेस और निकालो सामान तत्काल
नौकर की भांति लपका वो और रखा सूटकेस उसके चरणों में तत्काल
निकला चूड़ी का डिब्बा और पहना चूडा ,सजा ली कलाई उसने
दी सिन्दूर की डिब्बी पति के हाथ ,हुकुम साथ भरने को गहरी मांग
लगाने को कहा बिंदिया माथे पर ,ना था कोई शीशा उसके पास
पर्स से निकाले बिछिया , और नेलपालिश सजाने को हाथ -पाँव
झट तैयार हो गयी वो नव व्याहता .देखे सबने उसके रंग हजार
क्या वो बिच्या ,मांग सब पति प्रेम का प्रदर्शन था?
या सास का डर उसको कर रहा था मजबूर इस नाटक को करने को
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