गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

पापी पेट की खातिर


सर्दी


हाड गला देने वाली सर्दी में ,जब हम गर्म कपड़ों में भी रहे थे ठिठुर
देखा जो नज़ारा ,हड्डियाँ भी हो गयीं सुन्न,मानवीयता होती देखी निष्ठुर
चार अधनंगे बालक मात्र कुछ मछलियों के लिए जाल डाले थे एक गंदेपोखर में
कुछ बालक उस सर्दी में दूंढ़ रहे थे सिंघाड़े की बेल से कुछ सिंघाड़े उस पोखर में
...शीतल जल का सिर्फ एहसास ही कर देता है रोम रोम में सिरहन
गरीबी से लाचार, कुछ सिक्कों की खतिर,या भूख से हो कर बेचैन
थे मजबूर इस पूस माह में, तालाब में भी जाने को पेट की खातिर
चाहें मच्छी,सिंघाड़े खाने हों,या हों वो बेचने को पापी पेट की खातिर
ROSHI....

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