शनिवार, 28 जनवरी 2017

व्यथा




आधुनिक परिवेश में सीता ,उर्मिला की व्यथा
चौदह वर्ष कैसे गुजारे होंगे सती ने उन पिशाचों के बीच
ना कोई ख़त न था कोई सन्देश परस्पर पति -पत्नी के बीच
इंतजार भी खतम हुआ उस निर्मोही का ,भेज दिए थे जिसने दूत
छुद्र मानसिकता का जिसने दिया था अपना सबूत
वनगमन को जाते ना सोचा कदापि उस नववधु उर्मिला के वास्ते
कर दिया उसके सपनों पर तुषारापात ,अँधेरे कर दिए थे उसके दिन और रात
काश दिखाया होता बद्दप्पन ,ना छुड़ाया होता उर्मिला से लच्छमन का साथ
उसकी पीड़ा का नहीं है कंही इतिहास में कोई पन्ना
नामुमकिन है उर्मिला सरीखा जीवन जीना
काश राजा राम ने दिखाया होता थोडा सा भी बद्दप्पन
निज आदर्शों को त्याग कुछ सोच होता उपर उठकर
तो दोनों बहनों की ताक़त ,त्याग ,को जमाना देखता कुछ हटकर

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...